कवित
"शर को उतारी वारे कर ते महीप जापे
बिना पढ़े राजनीती उरालय आती है,
चन्दन समान जाकी बास ठैर ठैर फीरे
वंदन समान सत्य जगत को सिखाती है,
मिटाती है वैर-ज़ेर फीरी फीरी ठैर ठैर
कल्हंद के पौधे को मूल से मिटाती है,
गाती है हरिगुन जगत को सिखाती है
"नारण" भनंत ये ही चारण की जाती है. "
- नारण दान सुरु
Bhai Bhai Charan!